
2122-1212-22
अब करो फैसला सितमगर से,
झख्म हमने सहे बराबर से !
दर्द सहना हमें बताना था,
चुप रहे बेवफाइ के डर से !
कत्ल करना अदायगी उनकी,
बात पूछो न कोइ खंजर से !
जीत कर हारने कि है फितरत,
कोइ शिकवा नहीं मुकद्दर से !
हाथ तो कुछ न था न होगा अब,
सीख लो कुछ कभी सिकंदर से !
नीशीत जोशी
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