મંગળવાર, 20 ડિસેમ્બર, 2016
वो कभी तन्हा सफर में खो गए
२१२२ २१२२ २१२
वो कभी तन्हा सफर में खो गए,
तब तसव्वुर में असीरी हो गए,
तोडकर दिल फिर सुकूँ उनको मिला,
देख सादाँ हम उसे खुश हो गए,
वस्ल की उम्मीद उसने छोड़ दी,
हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए,
शाम तन्हा रात भी खामोश थी,
ख्वाब ने ओढा फलक फिर सो गए,
मुद्दतो से वो रहे खामोश पर,
गुफ्तगू को बेबहा लब हो गए !
नीशीत जोशी
(असीरी= कैद, बेबहा= बहुमूल्य)
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