મંગળવાર, 20 ડિસેમ્બર, 2016

जानता हूँ कि मुझसा मिलेगा नही

212-212-212-212 साथ कोई मेरे जब रहेगा नहीं, अश्क भी आँख से तब रुकेगा नहीं ! याद आ कर सताने लगा क्यूँ मुझे,, दिल तेरे सामने पर ज़ुकेगा नहीं ! गुफ्तगू प्यार की करता था वो बहुत, तोड के दिल मेरा अब कहेगा नहीं ! उस कहानी में होगा मेरा दर्द भी, इस लिये दास्ताँ वो सुनेगा नहीं ! अब नहीं है कोई ग़म मुझे हिज्र का, जानता हूँ कि मुझसा मिलेगा नही ! हो मसायब भी उस राह में गर मेरी, दर्द अफ़्ज़ा कभी तो दिखेगा नहीं ! तू सितम कर सनम दर्द भी दे, मगर, प्यार ये 'नीर' का जो मिटेगा नहीं ! नीशीत जोशी 'नीर' (मसायब=मुसीबतें,दर्दअफ्ज़ा=दर्द बढानेवाला)

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