
२१२२-२१२२-२१२२-२१२
रात ख़्वाबों में जगा कर वो सताना याद है,
हमको दिल की बेक़रारी का बढ़ाना याद है !
लिख रहे थे नाम किसका रेत पर दिलसाज़ से,
फिर उसीका नाम लिखकर वो मिटाना याद है !
दिल्लगी करते रहे तुम प्यार के उस नाम से,
फिर मेरा ही नाम लेकर खिलखिलाना याद है !
वस्ल की उस शाम को शरमा रहे थे तुम तभी,
वो तेरा दाँतो से होंठो को दबाना याद है !
क़ैस की वो बात सुनकर हंस पड़े थे जिस तरह,
फिर उसे राज़ो-नियाज़ी में जताना याद है !
बारिशों में भीग कर तुम लग रहे थे बेनज़ीर,
फिर यकायक बाम पर मुझको बुलाना याद है !
रोशनी करते रहे पढ़कर ग़ज़ल वो 'नीर' की,
महफ़िलो में यूं तेरा कुछ गुनगुनाना याद है !
नीशीत जोशी 'नीर'
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