મંગળવાર, 20 ડિસેમ્બર, 2016

यूं तेरा कुछ गुनगुनाना याद है

२१२२-२१२२-२१२२-२१२ रात ख़्वाबों में जगा कर वो सताना याद है, हमको दिल की बेक़रारी का बढ़ाना याद है ! लिख रहे थे नाम किसका रेत पर दिलसाज़ से, फिर उसीका नाम लिखकर वो मिटाना याद है ! दिल्लगी करते रहे तुम प्यार के उस नाम से, फिर मेरा ही नाम लेकर खिलखिलाना याद है ! वस्ल की उस शाम को शरमा रहे थे तुम तभी, वो तेरा दाँतो से होंठो को दबाना याद है ! क़ैस की वो बात सुनकर हंस पड़े थे जिस तरह, फिर उसे राज़ो-नियाज़ी में जताना याद है ! बारिशों में भीग कर तुम लग रहे थे बेनज़ीर, फिर यकायक बाम पर मुझको बुलाना याद है ! रोशनी करते रहे पढ़कर ग़ज़ल वो 'नीर' की, महफ़िलो में यूं तेरा कुछ गुनगुनाना याद है ! नीशीत जोशी 'नीर'

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