आशिक के अफसाने तो बहोत है,
पर आज वोह आशिक कहां है ?
निचौवार करते थे जान माशुक पे,
पर आज वोह माशुक कहां है ?
एक आह पे नीकलते थे दम उनके,
पर आज वोह दम कहां है ?
मिलन के ईन्तजारमे कटते थे रात-दिन,
पर आज वोह मिलन कहां है ?
पतझड को भी बनाते थे बसंत,
पर आज वोह मौसम कहां है ?
मत सुनाओ निशित दास्ता-ए-महोब्बत,
आज हम कहां और वोह कहां है ?
-- नीशीत जोशी
બુધવાર, 7 એપ્રિલ, 2010
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