શુક્રવાર, 23 એપ્રિલ, 2010

क्यों ?

जिन्दगी चाहे हो विरान जहांमे,
जहांसे मोडके मुह अपना, उसे सताये क्यो ?

गुजरनेवाली हे गुजर जायेगी,
दोस्तोको दे कर वास्ता, मजबुर करे क्यो ?

खुदने तो ले ली है तकलिफे इतनी,
दोस्तोको वाकिफ कर, दर्द उनका बढाये क्यो ?

जिसने दीया हो मकसद जीने का,
उसे भीगी नमकीन आंखे दिखाये क्यों ?

नीशीत जोशी

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