कयामत की रात की कहानी कुछ और थी,
बीजलीका खौफ रात तुफानी कुछ और थी,
किनारे पे खडे थे और वो थे उस किनारे,
समन्दरके लहरोकी रवानी कुछ और थी,
टमटमाती उन रोशनीमे जब देखा दोनोने,
जुबा खामोश थी,आंखोमे कहानी कुछ और थी,
कहते न बन पडा एक दुसरे को उस रात,
समज गये दोनो पर दुनीयाकी जुबानी और थी ।
नीशीत जोशी
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