સોમવાર, 11 એપ્રિલ, 2011

कुछ और थी


कयामत की रात की कहानी कुछ और थी,
बीजलीका खौफ रात तुफानी कुछ और थी,

किनारे पे खडे थे और वो थे उस किनारे,
समन्दरके लहरोकी रवानी कुछ और थी,

टमटमाती उन रोशनीमे जब देखा दोनोने,
जुबा खामोश थी,आंखोमे कहानी कुछ और थी,

कहते न बन पडा एक दुसरे को उस रात,
समज गये दोनो पर दुनीयाकी जुबानी और थी ।

नीशीत जोशी

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