गालिब गझल छोड कहां जायेगा,
जहां जायेगा शेर भी साथ जायेगा,
शराबकी महेफिल कहां मीलेगी,
मुशायरोकी मुफक्शी कहां मीलेगी,
गालीब श्रोताओ को छोड कहां जायेगा,
गालीब ये गझल को छोड कहां जायेगा,
की थी एकबार चले भी थे इश्कराह,
भटक गये, चली गयी वो अपनी राह,
प्यालो का सहारा छोड कहां जायेगा,
गालीब गझल को छोड कहां जायेगा .....
नीशीत जोशी
સોમવાર, 11 એપ્રિલ, 2011
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