બુધવાર, 27 એપ્રિલ, 2011

क्या यह सब दिन जा रहे है

व्वल्ला ! क्या यह सब दिन जा रहे है,
अंजुमनमें काले बादलो के ढेर छा रहे है,

सुबह की खुशनुमा हवा दुर हो चली,
वादियोमे प्रद्युषणके प्रवाह प्रसरे जा रहे है,

नदिया जो कभी रहती थी पतित पावन,
देखो तो वोह भी कचरो के ढेर बहा रहे है,

था दिन समुन्दर निहारने को लोग उमटते थे,
वही आज मजबुर नीगाहोसे नीहारे जा रहा है,

बनानेवालेने तो बनाया था एक बेनमुन ताज,
अब चडाके कागजी फुलोसे प्रद्युषण फैला रहे है ।

नीशीत जोशी

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો