
आ रही है सुबह, नया आफताब निकलेगा, ज़रा सब्र करो,
मुश्किलात फ़ना होंगी, हरेक लम्हा खिलेगा, ज़रा सब्र करो |
तूफानों का हुज़ूम भी ठहरेगा, वक़्त आने तो दो,
डूबनेवाला भी समंदर पे चलेगा, ज़रा सब्र करो |
नकश-ए-तसव्वूरत से , भला कबतब दिल बहलाओगे,
अब यकीनन वो हकीकत में मिलेगा, ज़रा सब्र करो |
अब सफ़र में कभी कोई , तन्हा नहीं रह पायेगा,
नेक राहो , तो खुदा भी साथ चलेगा, ज़रा सब्र करो |
फिर से वो महफ़िल सजेंगी, रौनक़ें भी होंगी वही ,
चिराग़ खुद्दारी का, हर दिल में जलेगा, ज़रा सब्र करो |
निशीत जोशी
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