રવિવાર, 10 નવેમ્બર, 2013
कहते है हम ग़ज़ल बंदगी कि तरह
कहते है हम ग़ज़ल बंदगी कि तरह,
जलते है जैसे जुगनू रोशनी कि तरह,
उतर आते है मेरे अशआर खुद-ब-खुद,
शेर महक जाते है जिंदगी कि तरह,
मचल उठते है उनके शहर के लोग,
लगते है शेर,उनकी सजनी कि तरह,
महेफिल खो जाए खयालो में ऐसी,
हर अल्फाज लगे मस्नवी कि तरह,
कभी तो वोह सुनेगे किसीसे मेरे गीत,
खिल उठेगे अन्धरो में रोशनी कि तरह !!!!
नीशीत जोशी 05.11.13
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