શનિવાર, 20 સપ્ટેમ્બર, 2014

गज़ब का दस्तूर है

2519740121_f892f3d8dd_z गज़ब का दस्तूर है, तेरे इस शहर का !! सभी के हाथो में है प्याला, पर ज़हर का !!!! भूल चुके फ़र्ज़, करने को किसी पे रहम का !! हैवानियत में रात गुजारी, ख्वाब अच्छे सहर का !!!! इत्तिफ़ाक़ तो है खुदा से, पर कोई खौफ नहीं !! खुद के लिए मुनाफ़ा, ख्वाइश दुसरो के तलफ का !!!! बैठे है खोल के दूकान खुदा के नाम की यहाँ !! परदे के पीछे काम वो सब करते है हवस का !!!! लगी है होड़ एक दूजे में आगे निकल जाने की, मक़सद सिर्फ रखा है अपने नाम के लक़ब का !!!! नीशीत जोशी (सहर= morning, तलफ= loss, लक़ब= honour) 08/09

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