શનિવાર, 20 સપ્ટેમ્બર, 2014
कभी सरगम बन कर, तुम भी मज़ा दिया करो
कभी हमे भी, कुछ अशआर बता दिया करो,
रंग ग़ज़लों का, हम पर भी चढ़ा दिया करो,
कभी बताओ जिंदगी जीने की तरकीब हमे,
सिखा के, ख़ुशी का आबशार बहा दिया करो,
जब देखो चश्म-ए-तर, मुलाक़ात पे हमारी,
उस हिज्र को, वस्ल-ए-जानाँ बना दिया करो,
रखी नहीं है ख्वाइश, कभी मिले सनद हमे,
कर के इमदाद, हर इल्जाम की सजा दिया करो,
ताउम्र गुनगुनाते रहे हम, तेरे नाम की ग़ज़लें,
कभी सरगम बन कर, तुम भी मज़ा दिया करो !!!!
नीशीत जोशी
(अशआर= verses couplets, आबशार= waterfall, चश्म-ए-तर= wet eyes, हिज्र= separation, वस्ल-ए-जानाँ= meeting with lover, सनद= certificate, इमदाद= help) 15.09.14
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો