શનિવાર, 27 ડિસેમ્બર, 2014
सुनी पड़ी है ये महफ़िल तेरे बगैर
आज तुम याद बेसुमार आते हो,
आ के तसव्वुर में फिर बहलाते हो,
दौड़ती है काटने को तन्हाईया,
आँखों में अश्क़ तुम भर जाते हो,
खुम है मय है साक़ी है तेरे लिए,
फिर मयक़दे को क्यों तरसाते हो?
रोशन कर दो फिर से हर चराग,
मायुसो का दिल क्यों जलाते हो?
सुनी पड़ी है ये महफ़िल तेरे बगैर,
महफ़िले सरताज़ तुम कहलाते हो !
नीशीत जोशी 25.12.14
हसीं पल थे
हसीं पल थे गुजर गए कुछ पल में,
चले गए हर कोई आनेवाले कल में,
वक़्त का क्या फिर से आ सकता है,
मगर न मुक़्क़मल होगा ऐसे बल में,
समंदर में तलातुम होना लाज़मी है,
आप ले के आये उसे नदी के जल में,
हमें मिला आप सभी का ये जो साथ,
खुदा ने दिया है अच्छे कर्म के फल में,
इन्तजार रहेगा ऐसे ही कोई जश्न का,
डूब जाए हमातन फिरसे ऐसे ही पल में !!!!
नीशीत जोशी (तलातुम=storm,हमातन=fully) 21.12.14
घर में तू सब की लाडली
चिड़ियों की तरह चहकती थी,खुश्बू की तरह महकती थी,
घर में तू सब की लाडली,सभी की घडकन में धड़कती थी,
बड़ी हुयी जब तू ,सपने भी खुद के सजोने लगी लाजवाब,
बातें तेरी घर के कोने कोने में पायल की तरह खनकती थी,
उतर आया चाँद से एक राजकुमार,ले जाने तुजे अपने साथ,
हो जाएगा घर वीरान बात यही हमारे जहन से उभरती थी,
नियति है करनी होगी बिदा तो कर लिया है दिन मुक़्क़मल,
जिम्मेवारी बढ़ेगी,थम जायेगी बर्फ सी जो कूदती उछलती थी,
इम्तिहान अब शुरू होगा जिंदगी का असल 'ओ, लाड़ली',
भरोषा है आओगी अव्वल, तू अव्वल आना ही समझती थी !!!!
नीशीत जोशी 06.12.14
चॉंद को छत पे अब बुलायेगा कौन
रूठोगे जो अब तुम मनायेगा कौन,
रोओगे जो अब तुम हसायेगा कौन,
तन्हाई काटती होगी रात होगी सुनी,
होगी जब सुबह फिर जगायेगा कौन,
जिक्र होगा महफिल में नाम का तेरा,
वहाँ ईश्क की गजल सुनायेगा कौन,
हसीन लम्हो की आयेगी बहोत यादें,
खींच के तेरा दुप्पटा सतायेगा कौन,
छत की सीढीयाँ बहाती होंगी आंसू ,
चॉंद को छत पे अब बुलायेगा कौन !
नीशीत जोशी 21.11.14
रुसवा सारा ज़माना हुआ
बढ़ा जब दर्द दिल में, क़लम को जुबाँ आयी,
महबूब की बातें, न जाने हमें ले कहाँ आयी,
करते रहे जिक्र वफ़ा का, बेवफा की बाहों में,
बहते रहे अश्क़ आँखों से, गुफ्तगू वहाँ आयी,
समझते रहे सिकंदर, मुक्क़दर का खुद ही,
मगर मुझे हाथ की लकीरे नजर कहाँ आयी,
मनाते हुए उनको रुसवा सारा ज़माना हुआ,
नफ़रत की सभी के हाथो जैसे कमां आयी,
क़त्ल किया मेरा, कातिल अदाओने उनकी,
आखिर शहरे खामोशा तक मेरी जाँ आयी !!!!
नीशीत जोशी (कमां= command) 17.11.14
बहा के आंसू, रवायत निभाता क्यों है ?
हर शाम मेरे दर, मेरे तसव्वुर में, तू आता क्यों है ?
इतफ़ाक नहीं मुझ से, फिर, अपना बताता क्यों है ?
रहा होगा कभी, मुहब्बत का भरम, मेरे ये दिल को,
सितमगर बन कर, तू अब नफरत, जताता क्यों है ?
लगता है, कुछ प्यार बाक़ी है तेरे जहन में, अब भी,
वरना, चश्म-ओ-तर हो कर, यहां से जाता क्यों है ?
बिछड़ कर मुझ से, जानते है, खुश नहीं हो तुम भी,
बनके संगदिल, फिर, ज़ब्त-ए-ग़म सिखाता क्यों है ?
मुद्दई, लाख इंकार करो तुम, यादो में नहीं आने का,
हिज्र में, फिर, बहा के आंसू, रवायत निभाता क्यों है ?
नीशीत जोशी
{ चश्म-ओ-तर=wet eyes, ज़ब्त-ए-ग़म= दुःख सहने की शक्ति) 10.11.14
મિલનની આશ અમે છોડતા નથી
કહો છો કે કોઈનું દિલ તોડતા નથી,
પકડેલો હાથ કોઈનો છોડતા નથી,
અનુભવ અમારો તો કઈક રહ્યો જુદો,
શાને થાય છે આમ તે બોલતા નથી,
ઠુકરાવ્યો હાથ તોડી ને દિલ અમારું,
છુપાવેલો દિલનો રાઝ ખોલતા નથી,
બદ થી બદ્દતર બનાવી અમ જિંદગી,
અને કહો છો સાથ અમે શોભતા નથી,
ડૂબી ગઈ છે અમ જિંદગી વિરહ માહી,
પણ મિલનની આશ અમે છોડતા નથી.
નીશીત જોશી 06.11.14
सुखन ऐसा लिख के दिखा दो
वरक़ पर क़लम चला दो,
लहू को मेरे स्याही बना दो,
चलगे अल्फ़ाज़ खुद-बखुद,
जज्बात लिख के बता दो,
बनी नहीं जो बात कहने पे,
एहसासे दिल यहाँ जता दो,
रफ़्तार देकर के क़लम को,
अफ़साने से वरक़ सजा दो,
पढ़ के भूल न पाये कोई भी,
सुखन ऐसा लिख के दिखा दो !!!!
नीशीत जोशी 04.11.14
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