
રવિવાર, 23 ઑક્ટોબર, 2016
वस्ल का वादा नहीं हुआ

समझूँगा

आँखो से पिलाना आ गया

हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए

जब रहा इश्क़ सिर्फ बातों का,
झख्म हमने सहे बराबर से !
वो हज़ारो हसरतों के सामने लाचार था !

હાથ ખાલી હતા સિકંદરના
अँधेरी जिंदगी में देर तक अच्छा नहीं होता !

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