રવિવાર, 12 ફેબ્રુઆરી, 2017
तो और क्या करता
1212-1122-1212-22
उसे मैं प्यार ना करता, तो और क्या करता,
करीब गर मैं न लाता, तो और क्या करता !
चिराग को भी बुझाकर, किया अंधेरा जब,
मैं अपना घर ना जलाता, तो और क्या करता !
मैंने उसे बुलाया, मगर न आया वोह,
मैं प्यार में न बुलाता, तो और क्या करता !
कहा उसे कि मेरे पास ही,रखो दिल तुम,
वो मुस्कुरा के न जाता, तो और क्या करता !
खयाल से ही उसे,प्यास फिर लगी होगी,
वो प्यास भी न बुझाता, तो और क्या करता !
कभी सितम तो, कभी ज़ख्म दे रहा था वोह,
मैं फिर सितम ना जताता, तो और क्या करता !
वो गुफ्तगू भी करे 'नीर', फिर करे हैराँ,
मैं गर करीब ना आता, तो और क्या करता !
नीशीत जोशी
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