રવિવાર, 12 ફેબ્રુઆરી, 2017

क्या डरना

अगर उतरें है दरिया में तो गहराई से क्या डरना, किसीसे लग गया हो दिल तो रुसवाई से क्या डरना ! चलोगे गर अंधेरो में जला कर उन चरागो को, न कोई गर नजर आये तो परछाई से क्या डरना ! तेरे दीदार से अब होश ही सब उड गये दिलबर, रहा बेहोश मैं हूँ जब तो पुरवाई से क्या डरना ! हमारे प्यार की बातों पे हंगामा तो है बरपा, हुई है यूँ मुहब्बत जब तो आश्नाई से क्या डरना ! हो जब तुम साथ फिर हरपल तो लगता है मुझे दिलकश, हुआ है प्यार जब दिल से तो रानाई से क्या डरना ! खुदा माना है जब तुझको ज़ुकेंगे प्यार के आगे, मुहब्बत है मुझे, उसकी जबीँसाई से क्या डरना ! हमारी जब जला कर खाक कर दी है ये बस्ती तब, वो तन्हाई में कैसी भी हो यकजाई से क्या डरना ! नीशीत जोशी

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