રવિવાર, 12 ફેબ્રુઆરી, 2017
हर शाम को
2212-2212-2212
यादें तेरी आने लगी हर शाम को,
आकर वो शरमाने लगी हर शाम को !
तुम फिक्र करते हो उदासी की यहाँ,
अब रूह भी घबराने लगी हर शाम को !
वो याद भी सजकर मिली थी फिर मुझे,
वो दर्द सहलाने लगी हर शाम को !
कोई नजर तो डालकर देखो जरा,
आँखें भी तडपाने लगी हर शाम को !
पल पल सताती है फिज़ा मुझको यहाँ,
सूरत भी मुरझाने लगी हर शाम को !
नीशीत जोशी
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