બુધવાર, 15 સપ્ટેમ્બર, 2010

मेरे प्यारे मोहन


कितने परवाने जले राज ये पाने के लिये,
शमा जलने के लिये है या जलाने के लिये,

घुंघराले तेरे बाल, मानो आया हो सावन,
मंद मंद मुश्कान, मानो बागो का आंगन,

वो कमसीन चहेरा, मानो उतरा आकाश,
गुलाबी है गाल, मानो लुभाता प्रकाश,

मदहोशी आंखे, मानो तीरछी प्रेम कटार,
नसीले है होठ, मानो प्याला-ए-शराब,

बंसी तेरी बजाने के लिये है या प्रेमवश के लिये,
यह रुप तेरा पाने के लिये है या तडपाने के लिये।

नीशीत जोशी

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