મંગળવાર, 1 જાન્યુઆરી, 2013
नयी सुबह हुई
नयी सुबह हुई, ये भी शाम ढले चली जायेगी,
मुहोब्बत है, सितमगर राते भी सही जायेगी,
गर छुपा के रखी हो दास्ताँ खुद के ख्वाब की,
ग़ज़ल बन,महेफिल में सरेआम कही जायेगी,
बुत बनके,करते रहोगे इन्तजार उनकी राह पे,
आँखों को अश्क की बारीस तौफे में दी जायेगी,
नजरे फेर लेने से, ऐसे तो नहीं बदलते है रिश्ते,
रूमानी तभी आएगी जब बातो से गर्मी जायेगी,
शाख से गिरे पत्तो पर ओस की बूंद गिरने पर,
बदलते उन मौसम की राह भी बदली जायेगी |
नीशीत जोशी 01.01.13
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો