રવિવાર, 20 જાન્યુઆરી, 2013
यूँ तो हमें अपनी ही गिरफ्त में जाना था
यूँ तो हमें अपनी ही गिरफ्त में जाना था,
परिंदे को जैसे क़फ़स ही में उलजाना था,
नुक्तादां थे वोह,प्यार से हमें अपना बनाया,
हमने इतबार करके उसे अपना माना था,
वफ़ा का नाम ले कर सितम करते रहे वोह,
नादाँ थे हम,उनका वही फरेबी फ़साना था,
जुस्तजू रखी हमने उनसे मिलने की हरदम,
पर उनके पास न मिलने का नया बहाना था,
हर ख्वाइश को ठुकराया मजबूरी के नाम से,
हमसे गुफ्तगू करना उसने वबाल माना था,
सिख न पाए खेल उनके साथ खेल कर भी,
हमें कहाँ किसीसे ऐसा पुरदर्द आजमाना था !!!!
नीशीत जोशी 12.01.13
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