રવિવાર, 6 જાન્યુઆરી, 2013
इश्क के आरूज़
इश्क के आरूज़, किसीने हमें कभी सिखाया नहीं,
दफ़न कर दिए जज्बात, हमने कभी जताया नहीं,
भर के रखा है आँखों में अश्क का तूफानी समंदर,
दिल में बसा ज़लज़ला किसीको कभी दिखाया नहीं,
उतर आते है ख्वाब रातो को कोई फ़रीज़ा* हो जैसे,duty
नींद के आगे मैंने कोई चौकीदार कभी बैठाया नहीं,
जसारत* दिखा कर जश्न मनाते रहते है लोग यहाँ,daring
परवाना जले नहीं इसीलिए चराग कभी जलाया नहीं,
रोज़ वोह आ ही जाता है दर-ए-दिल पे दस्तक देने,
है वोह एक शख्स जिस को मैंने कभी भुलाया नहीं |
नीशीत जोशी 04.01.13
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો