सजा हमें ये कैसी मिली दिल लगाने की,
रो रहे है मगर तमन्ना थी मुश्कुराने की,
रुसवा खुद हुए, तोहमत लगा दी हम पर,
बात तय हुयी थी एकदूजे को मनाने की,
आये महफ़िलमें चराग जला के छोड़ गए,
परवाह न की उसने जलते हुए परवाने की,
मझधार ले जा कर नातर्स ने छोड़ दिया,
तकल्लुफ न की साहिल तक पहोचाने की,
अपना हाल-ए-दिल किस किस को सुनाये,
हबीब भी जिक्र करते है खुद के फ़साने की !
नीशीत जोशी 17.01.13
રવિવાર, 20 જાન્યુઆરી, 2013
हाल-ए-दिल किस किस को सुनाये
सजा हमें ये कैसी मिली दिल लगाने की,
रो रहे है मगर तमन्ना थी मुश्कुराने की,
रुसवा खुद हुए, तोहमत लगा दी हम पर,
बात तय हुयी थी एकदूजे को मनाने की,
आये महफ़िलमें चराग जला के छोड़ गए,
परवाह न की उसने जलते हुए परवाने की,
मझधार ले जा कर नातर्स ने छोड़ दिया,
तकल्लुफ न की साहिल तक पहोचाने की,
अपना हाल-ए-दिल किस किस को सुनाये,
हबीब भी जिक्र करते है खुद के फ़साने की !
नीशीत जोशी 17.01.13
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