શનિવાર, 23 નવેમ્બર, 2013
कटती है जिंदगी, राह के पत्थरो सी
तेरी आँखों के पैमाने, हमने पिये है,
फिर भी तिश्नगी में ही, हम जिये है,
गूंजती है आवाझ, दिल के कूचे से,
पर तेरे वादो ने, ओठ मेरे सिये है,
तकदीर समझ बैठे, प्यार को तेरे,
रातो ने भी देखो, कैसे ख्वाब दिये है,
दिल तोड़ने कि,वो हरकत तेरी थी,
बेवफाई कि तोहमत, मेरे लिये है,
कटती है जिंदगी, राह के पत्थरो सी,
ठोकरो में रहकर, गिरियाँ में जिये है !!
नीशीत जोशी 22.11.13
परिन्दे अपनी परवाज पे नाज करता है
परिन्दे अपनी परवाज पे नाज करता है,
अर्श पे पहोच के कहाँ आवाज करता है,
बुलंदी टिकती नहीं किसीके पास ज्यादा,
गुमानी में क्यूँ लोगो को नाराज करता है,
करके नफ़रत दिल को जीता नहीं जाता,
प्यार बांटनेवाला ही दिल पे राज करता है,
मिलती रहती है दाद हिम्मत कि उसे ही,
जो बेझिझक सच्चाई से आगाज करता है,
अंधेरो कि हुकूमत जब पड़ती है खतरे में,
जुगनू तब खुद की रोशनी पे नाज करता है !!
नीशीत जोशी 20.11.13
પરબીડિયું બીડી દીધું છે આજ
પરબીડિયું બીડી દીધું છે આજ,
મોકલવવા તેણે કીધું છે આજ,
પ્રેમ લાગણીઓ સમજાશે હવે,
પાન પ્રેમરસ નું પીધું છે આજ,
હતો કદાચ તેનો પથ અટપટો,
મળવાનું મુજને સીધું છે આજ,
જે દિલ સાચવી રાખેલું તેમણે,
મેં એ દિલ જીતી લીધું છે આજ,
તરસ્યો રાખેલો આજ દિન સુધી,
આંખોથી પીવાનું કીધું છે આજ.
નીશીત જોશી 19.11.13
चलो हम कोई एक समंदर बन जाये
चलो हम कोई एक समंदर बन जाये,
मझधार पहोच कर भंवर बन जाये,
बचाकर हर डूबती हुयी कश्ती को,
चलो उसकी आसान सफ़र बन जाये,
कहते है बात प्यार में अंधे होने कि,
जता के प्यार उनकी नजर बन जाये,
कुछ सुने और सुनाये महफ़िल-ए-इश्क़ में
बहर सिखके नायाब सुखनवर बन जाये,
दास्ताँ-ए-इश्क़ में जिक्र हमारा भी हो,
चलो बेपायां प्यार करके अमर बन जाये !!!!
नीशीत जोशी 16.11.13
આપણે નહી મળીયે
એ તો નક્કી છે હવે જીવનભર આપણે નહી મળીયે,
તો પછી કહો ઈશ્વર થી ઉમર લઇ આપણે શું કરીએ?
બનીને રહશે બધી એ ક્ષણો હૃદય ની યાદો માહી,
તો પછી એ પડછાયા ને શા માટે શોધતા ફરીએ?
દરિયા ને ઉલેચી ઉલેચી નયનોમાં રાખીશું સાચવી,
તો પછી એવા ટીપે ટીપે શાને ખોબા ભરતા રહીએ?
મળ્યો'તો પ્રેમ એક આશીર્વાદ રૂપે જે કરતા રહીશું,
તો પછી એ પ્રેમ ને ઈશ્વરી અભિશાપ શાને કહીએ?
કરવા પૂર્ણ અભિલાષા મળતો હોય છે બીજો જનમ,
તો પછી હૃદય વેદના ના રોદણા શાને રોતા રહીએ?
નીશીત જોશી 14.11.13
जिधर भी देखु,तेरा साया नजर आता है,
बीते लम्हो कि यादो का, पहर आता है,
जिधर भी देखु,तेरा साया नजर आता है,
सामने होते हुए समंदर, रहता हूँ तिश्ना,
तिश्नगी मिटाने, तन्हाई का जहर आता है,
जिंदगी भी लगने लगी है, पतझड़ जैसी,
बिन पत्तो का जैसे नजर, शजर आता है,
निकल पड़ते है, बेताबी से राह-ए-सफ़र पे,
बातो में जब, मुहिब्ब का शहर आता है,
क़यामत तो तब हो जाती है, सोते सोते,
रातो को ख्वाब बनकर, कहर आता है !
नीशीत जोशी 12.11.13
वो शख्स परेशान क्यों है ?
दिलकश महफ़िल में, वो शख्स परेशान क्यों है ?
खुद अपने घर में ही , इंसान मेहमान क्यों है ?
नाम कुछ संतो के शामिल है, दरिंदो के संग,
कुछ लोगो कि नजर ये हादसा, नागहान क्यों है?
सो जाते है फुटपाथों पे, भूखे पेट जब गरीब,
मंदिरो में तब, लगे प्रसाद का नुक़सान क्यों है?
लगा दी है, तहवारो पे पाबंदी, शोरो गूल कि,
मगर आतंकीओ के, बेदाग़ गिरेबान क्यों है?
महंगाई के बोझ तले, पीस रहा है इंसान,
खामोश रह के, देखनेवाले निगहबान क्यों है?
नीशीत जोशी 10.11.13
ज़रा सब्र करो
आ रही है सुबह, नया आफताब निकलेगा, ज़रा सब्र करो,
मुश्किलात फ़ना होंगी, हरेक लम्हा खिलेगा, ज़रा सब्र करो |
तूफानों का हुज़ूम भी ठहरेगा, वक़्त आने तो दो,
डूबनेवाला भी समंदर पे चलेगा, ज़रा सब्र करो |
नकश-ए-तसव्वूरत से , भला कबतब दिल बहलाओगे,
अब यकीनन वो हकीकत में मिलेगा, ज़रा सब्र करो |
अब सफ़र में कभी कोई , तन्हा नहीं रह पायेगा,
नेक राहो , तो खुदा भी साथ चलेगा, ज़रा सब्र करो |
फिर से वो महफ़िल सजेंगी, रौनक़ें भी होंगी वही ,
चिराग़ खुद्दारी का, हर दिल में जलेगा, ज़रा सब्र करो |
निशीत जोशी
રવિવાર, 10 નવેમ્બર, 2013
कहते है हम ग़ज़ल बंदगी कि तरह
कहते है हम ग़ज़ल बंदगी कि तरह,
जलते है जैसे जुगनू रोशनी कि तरह,
उतर आते है मेरे अशआर खुद-ब-खुद,
शेर महक जाते है जिंदगी कि तरह,
मचल उठते है उनके शहर के लोग,
लगते है शेर,उनकी सजनी कि तरह,
महेफिल खो जाए खयालो में ऐसी,
हर अल्फाज लगे मस्नवी कि तरह,
कभी तो वोह सुनेगे किसीसे मेरे गीत,
खिल उठेगे अन्धरो में रोशनी कि तरह !!!!
नीशीत जोशी 05.11.13
बिखरा हुआ हूँ मैं,
लोगो ने समझा बिखरा हुआ हूँ मैं,
किसीके ग़म में सिमटा हुआ हूँ मैं,
रिश्तो ने कर दिया है कायल मुझे,
रिस्तो कि डोर से लिपटा हुआ हूँ मैं,
यादो ने लगा रखी है आग दिल में,
मोंम कि तरहा पिघला हुआ हूँ मैं,
मुफलिसी नहीं ये दीवानगी है मेरी,
पर लोग कहते है बिगड़ा हुआ हूँ मैं,
क़ैद करके घर में, क़ुफ़्ल लगा दिया,
क़फ़स से उड़ना, बिसरा हुआ हूँ मैं !!!!
नीशीत जोशी (क़ुफ़्ल=a lock)30.10.13
कुछ मेरी तरहा
रोया करेंगे आप भी, कुछ मेरी तरहा,
खो जायेंगे ख्वाब भी, कुछ मेरी तरहा,
चीखती रहेगी वो आँखे, बहा के आंसू,
तन्हाई रहेगी पास भी, कुछ मेरी तरहा,
तैराकी काम न आयेगी समंदर की यहाँ,
रुक जायेगी सांस भी, कुछ मेरी तरहा,
चलते रहना होगा उन कांटो की राह पे,
खूं निकलने के बाद भी, कुछ मेरी तरहा,
रकीबो से न मिलेगा अपनों का ठिकाना,
ढूंढते रहेंगे हमें आप भी, कुछ मेरी तरहा !!!!
नीशीत जोशी 28.1013
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