
શનિવાર, 23 નવેમ્બર, 2013
कटती है जिंदगी, राह के पत्थरो सी

परिन्दे अपनी परवाज पे नाज करता है

પરબીડિયું બીડી દીધું છે આજ

चलो हम कोई एक समंदर बन जाये

આપણે નહી મળીયે

जिधर भी देखु,तेरा साया नजर आता है,

वो शख्स परेशान क्यों है ?

ज़रा सब्र करो

રવિવાર, 10 નવેમ્બર, 2013
कहते है हम ग़ज़ल बंदगी कि तरह

बिखरा हुआ हूँ मैं,

कुछ मेरी तरहा

આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ્સ (Atom)