રવિવાર, 14 ઑગસ્ટ, 2016
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
2122 1212 22
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है,
क्यो मगर इस तरह वो जलती है !
आजमाईश कर नहीं दिल की,
रूह मेरी बेहिसाब डरती है !
मंझिलें दूर जब लगे मुझको,
जाँफिशानी उडान भरती है !
दाम देना पडा मुझे दिल का ,
बेइमानी खराब लगती है !
ख्वाब आते रहे तेरे शब भर,
वो सुबा फिर मुझे सताती है !
नीशीत जोशी 07.08.16
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