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खबर नासाद, मुद्दत से कहाँ कोई बिशारत है,
यहां हैं औरतेँ हयबत, कहाँ कोई हिफाजत है,
न कोई वास्ता अब है, मुहब्बत से किसी को भी,
दिलो में सिर्फ है नफरत, रखी मुंह में शिकायत है,
मुहाली इस कदर छाई, कि मुश्किल हो गया जीना,
है महँगाई भी जोरों पे, क़यामत की ये दावत है,
कहीं डाका पड़ा है तो, कहीं इज़्ज़त हुई रुसवा,
कि अब अखबार भी तो, बस पढ़ाता ये हिकायत है,
अगर है आसमाँ को, कुछ घमण्ड अपनी अना पे तो,
हमें भी आसमानों को, जमीं करने की आदत है !
नीशीत जोशी
(बिशारत=good news, हयबत=panic, हिकायत=story, अना=ego)
घमण्ड अपनी (घमण्डपनी) 21.08.16
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