રવિવાર, 14 ઑગસ્ટ, 2016
कहाँ कहाँ
221 2121 1221 212
उनकी पुकार को लिए, निकला कहाँ कहाँ,
कहने खुदा उसे फिर, अटका कहाँ कहाँ,
यादें रही तेरी, वह दिल में उतार दी,
मैं तेरी आरजू लिए, भटका कहाँ कहाँ,
कम तो नहीं हुई, बहते अश्क की सजा,
मैं रोकने उसे, फिर छुपता कहाँ कहाँ,
जीने नहीं दिया, मरने भी नहीं दिया,
ले कर वो झख्म मैं, अब फिरता कहाँ कहाँ,
फुर्कत कभी तो, वस्ल कभी है मेरी यहाँ,
ये हादसे के दर्द को, भरता कहाँ कहाँ !
नीशीत जोशी 13.08.16
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