રવિવાર, 28 ઑગસ્ટ, 2016
अंधेरो को मिटा कर देखते है
1222 1222 122
अंधेरो को मिटा कर देखते है,
चरागो को जला कर देखते है,
मुकम्मल हो सफर कोई तो अब भी,
कदम अपने बढा कर देखते है,
मुहब्बत में संभलते होंगे ही वो,
उसीको आजमा कर देखते है,
गिरे को भी उठाना फर्ज़ है तो,
किसीको अब उठा कर देखते है,
किताबों की जरूरत है किसे अब,
चलो दिल को पढा कर देखतें है,
बुतो को जब खुदा माना यहाँ तो,
खुदा तुम को बना कर देखते है,
चलो अब 'नीर' रूठे को मना कर,
दिलों से दिल मिला कर देखते है !
नीशीत जोशी 'नीर' 27.08.16
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