રવિવાર, 7 ઑગસ્ટ, 2016
हर मुज़ामत को हम पार कर लेंगे
२१२२ १२१२ २२
हर मुज़ामत को हम पार कर लेंगे,
हर वो इल्जाम खुदी के सर लेंगे,
बह न जाए वो अश्क़ आँखों से,
अश्क़ से हम बहर वो भर लेंगे,
हम फ़क़ीरों के पास अब है क्या,
है वो इक जाँ कहो तो मर लेंगे,
कर तआक़ुब मेरे लिखे खत का,
रब्त हम कासिदों से कर लेंगे,
बुग़्ज़ से याद तुम तो कर लेना,
ज़ख्म हम सीने पर ही धर लेंगे !
नीशीत जोशी
(मुज़ामत=obstruction,बहर=sea,तआक़ुब=follow up,बुग़्ज़=hatred) 27.07.16
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