રવિવાર, 12 ફેબ્રુઆરી, 2017
शब भर हक़ीक़त छोड़िये
2212 2212 2212 2212
शब भर हक़ीक़त छोड़िये अब ख़्वाब भी होता नहीं,
फिर भी उसी की आस में मैं रात भर सोता नहीं !
आसाँ नहीं है प्यार को करना मुक़म्मल इस तरह
कोई भी अबतो प्यार का इक बीज भी बोता नहीं !
कैसे जसारत पाए हम यह प्यार पाने के लिए,
उस बेवफा के प्यार का अब बोझ दिल ढोता नहीं !
कोई घरोंदा है नहीं दिल की हिफाजत जो करें,
ताहम ये दिल भी दर्द से अब तो यहां रोता नहीं !
खानातलाशी तो बहुत कर दी यहां अब बस करो,
तस्कीन है इस बात का अब दिल कहीं खोता नहीं !
नीशीत जोशी
(जसारत - हिम्मत, ताहम-तो भी, खानातलाशी-खोई चीज की छीनबीन करना, तस्कीन-सन्तोष)
ढाओ न मुझ पर यूँ सितम
क्या डरना
अगर उतरें है दरिया में तो गहराई से क्या डरना,
किसीसे लग गया हो दिल तो रुसवाई से क्या डरना !
चलोगे गर अंधेरो में जला कर उन चरागो को,
न कोई गर नजर आये तो परछाई से क्या डरना !
तेरे दीदार से अब होश ही सब उड गये दिलबर,
रहा बेहोश मैं हूँ जब तो पुरवाई से क्या डरना !
हमारे प्यार की बातों पे हंगामा तो है बरपा,
हुई है यूँ मुहब्बत जब तो आश्नाई से क्या डरना !
हो जब तुम साथ फिर हरपल तो लगता है मुझे दिलकश,
हुआ है प्यार जब दिल से तो रानाई से क्या डरना !
खुदा माना है जब तुझको ज़ुकेंगे प्यार के आगे,
मुहब्बत है मुझे, उसकी जबीँसाई से क्या डरना !
हमारी जब जला कर खाक कर दी है ये बस्ती तब,
वो तन्हाई में कैसी भी हो यकजाई से क्या डरना !
नीशीत जोशी
हर शाम को
2212-2212-2212
यादें तेरी आने लगी हर शाम को,
आकर वो शरमाने लगी हर शाम को !
तुम फिक्र करते हो उदासी की यहाँ,
अब रूह भी घबराने लगी हर शाम को !
वो याद भी सजकर मिली थी फिर मुझे,
वो दर्द सहलाने लगी हर शाम को !
कोई नजर तो डालकर देखो जरा,
आँखें भी तडपाने लगी हर शाम को !
पल पल सताती है फिज़ा मुझको यहाँ,
सूरत भी मुरझाने लगी हर शाम को !
नीशीत जोशी
बन गया
तीरगी लेने तुम्हारी, मैं उजाला बन गया,
फिर चुरा कर अश्क सारे, मैं फसाना बन गया !
नाम जो बदनाम था पहले, वो बातें अब नहीं,
मैं तुम्हारे इश्क़ में, पागल दिवाना बन गया !
देखना लहरों की ओर, अच्छा लगा इतना मुझे,
मैं उन्हे पाने को, दरया का किनारा बन गया !
इक मुनाज्जिम ने कहा, तन्हा रहोगे तुम सदा,
तबसे तन्हाई से मेरा, राब्ता सा बन गया !
महफिलों में रिंद सब, मदहोश थे, पी कर शराब,
चश्म ही मेरे लिये तो, सा'द प्याला बन गया !
नीशीत जोशी
(मुनाज्जिम- ज्योतिषी)
कुछ तो और थी
2122-2122-2122-212
लब रहे गूंगे मगर वो बात कुछ तो और थी,
फिर हुई जो आँख से बरसात कुछ तो और थी,
वो तबस्सुम ने रखा था बाँध कर के चाँद को,
जश्न में उसने गुजारी रात कुछ तो और थी,
मरहबा कहने को मशरूफी जो कोई हो गयी,
आज उनके घर की नक्शाजात कुछ तो और थी,
खेलते बाज़ी रहे हम रोज उनके साथ में,
जीत लेते हम मगर वो मात कुछ तो और थी,
ये सजा है या सताने का तरीका बोल तू,
प्यार करके दिल पे करती घात कुछ तो और थी !
नीशीत जोशी
हम वफा करते
2122-1212-22
वो खुदा से कोई दुआ करते,
और मुझसे न फिर दगा करते !
दर्द की इंक़िज़ा भी हो जाती,
हमसफर प्यार में रहा करते !
इश्क का रोग जब लगा सबको,
मेरे दिलबर मेरी दवा करते !
याद आते कभी वो बीते पल,
अश्क आँखो से फिर बहा करते !
वो अगर बेवफा है फितरत से,
इश्क़ में सिर्फ हम वफा करते !
नीशीत जोशी
(इंक़िज़ा - समाप्ति)
आवाज देना तुम मुसव्विर की तरह
2122-2122-2122-212
हम तेरे कूचे में आए है मुसाफिर की तरह,
क्यों मुझे फिर तुम बुलाते हो वे काफिर की तरह,
गर तुझे कोई मेरा ही अक्स हैराँ भी करे,
तब मुझे आवाज देना तुम मुसव्विर की तरह,
आजमाते कह दिया था मुझको जाबिर भी कभी,
फिर रखा भी है मुझे कोई जवाहिर की तरह,
बन गया कादिर मेरा दिल अब हुनर कोई दिखा,
की लगे नादान ये दिल सबको नादिर की तरह,
महफिलो में तुम गज़ल कहते हो, साहिर तो नहीं,
लोग कहते है कि पढता है मुकर्रिर की तरह !
नीशीत जोशी
(काफिर -an infidel,sweetheart, मुसव्विर- painter,जाबिर- cruel,जवाहिर- jewels,कादिर- powerful ,नादिर- precious,साहिर -magician, मुकर्रिर- speaker
आँखों का जादू
1222-1222-122
दुपट्टा तेरा जो लहरा गया है,
सुरूर अब तो फ़िज़ा में छा गया है !
चमन में खुश्बुएं कलियों की महकीं,
बहारो का ये मौसम आ गया है !
चरागो ने कि रोशन महफिलें जब,
बुझे को भी तो जलना आ गया है !
कहाँ तक फिर वो छुपता महफिलों में,
नकाबो में भी पहचाना गया है !
नशा होता नहीं बादा से भी अब,
तेरी आँखों का जादू छा गया है !
नीशीत जोशी
हम क्या करें?
२१२ २१२ २१२ २१२
मंझिलें गर भटक जाए,हम क्या करें?
दिल कहीं फिर बहक जाए,हम क्या करें?
क्या हुई बात कोई बताता नहीं,
अश्क़ कोई छलक जाए, हम क्या करें?
तोड़ कर दिल मेरा अब सुकूँ है उसे,
जिक्र से दिल दहक जाए, हम क्या करें?
पाँव भी लडखडाये मेरी वस्ल पे,
हिज्र से दिल धडक जाए,हम क्या करें?
तोड़ कर फूल रौंदा गया पाँव से,
फिर भी दिल जो महक जाए,हम क्या करें?
प्यार कर के निभाने का दस्तूर है,
बेवफा बन सरक जाए,हम क्या करें?
शर्म आती है अब तो तुझे देख कर,
'नीर' गर दिल चहक जाए,हम क्या करें?
निशीथ जोशी 'नीर'
आराम नहीं है
1221-122 , 1221-122
किया प्यार है जब से, वो आराम नहीं है,
तेरी सोच के सीवा, मुझे काम नहीं है!
तेरी याद करेगी, परेशान मुझे अब,
उदासी के अलावा, वो इनाम नहीं है!
तेरे साथ कभी तो,मेरा नाम जुडेगा
मेरा प्यार बहुत है, जो बदनाम नहीं है !
मुझे दर्द मिला है, तेरे प्यार में दिलबर,
मगर प्यार पे कोई, वो इल्जाम नहीं है !
बहुत शाम बिताई, न समझे कभी तुम,
मुहब्बत का चलन वो, अभी आम नहीं है !
नीशीत जोशी
तो और क्या करता
1212-1122-1212-22
उसे मैं प्यार ना करता, तो और क्या करता,
करीब गर मैं न लाता, तो और क्या करता !
चिराग को भी बुझाकर, किया अंधेरा जब,
मैं अपना घर ना जलाता, तो और क्या करता !
मैंने उसे बुलाया, मगर न आया वोह,
मैं प्यार में न बुलाता, तो और क्या करता !
कहा उसे कि मेरे पास ही,रखो दिल तुम,
वो मुस्कुरा के न जाता, तो और क्या करता !
खयाल से ही उसे,प्यास फिर लगी होगी,
वो प्यास भी न बुझाता, तो और क्या करता !
कभी सितम तो, कभी ज़ख्म दे रहा था वोह,
मैं फिर सितम ना जताता, तो और क्या करता !
वो गुफ्तगू भी करे 'नीर', फिर करे हैराँ,
मैं गर करीब ना आता, तो और क्या करता !
नीशीत जोशी
तलबग़ार कर दिया जाए
1212-1122-1212-22
किया है प्यार तो इजहार कर दिया जाये,
तुम्हें भी इश्क़ का बीमार कर दिया जाये !
बना दिया है मेरे दिल को तुमने दीवाना,
चलो तुम्हें भी तलबग़ार कर दिया जाए !
चला न जाए ये दिल अजनबी के हाथों में,
मुहिब्ब को पहरेदार कर दिया जाये !
कमाल का है करिश्मा ये दिल लगाने का,
चलो उसे भी कलाकार कर दिया जाये !
खफा हुआ है जो दिल आज दूर हो कर भी,
ये शब को क्यों फिर दुश्वार कर दिया जाये !
नीशीत जोशी
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