શુક્રવાર, 1 સપ્ટેમ્બર, 2017
प्यार दिलबर से यहाँ मिलता नहीं
2122-2122-2122-212
क़त्ल करते थे वो आँंखो से मगर क़ातिल न थे,
प्यार करते थे उन्हे हम उसमें तो गाफ़िल न थे !
खो रहे थे इंतजारी के तसव्वुर में कभी,
प्यार की वो गुफ्तगू से हम भी क्या कामिल न थे ?
लग रहा है अब समुन्दर भी अकेला क्या वहाँ,
इश्क़ करती उन लहेरें और क्या साहिल न थे ?
अब तो दिल की बेकरारी बढ गयी है प्यार में,
इल्तज़ा हमने रखी ख़त की मगर हामिल न थे!
माँगने से प्यार दिलबर से यहाँ मिलता नहीं,
प्यार के क़ाबील अब कोई भी नादाँ दिल न थे !
नीशीत जोशी 'नीर'
(गाफ़िल - असावधान, कामिल - पूरा जानकार, साहिल - किनारा, हामिल - समाचार ले जानेवाला)
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