શુક્રવાર, 1 સપ્ટેમ્બર, 2017

होंठ ही मेरे लिये तो सा'द प्याला बन गया

तीरगी लेने तुम्हारी मैं उजाला बन गया, फिर चुरा कर अश्क सारे मैं फसाना बन गया ! नाम जो बदनाम था पहले वो बातें अब नहीं, मैं तुम्हारे इश्क़ में पागल दिवाना बन गया ! देखना लहरों की ओर अच्छा लगा इतना मुझे, मैं उन्हे पाने को दरया का किनारा बन गया ! इक मुनाज्जिम ने कहा तन्हा रहोगे तुम सदा, तबसे तन्हाई से मेरा राब्ता सा बन गया ! महफिलों में रिंद सब मदहोश थे पी कर शराब, होंठ ही मेरे लिये तो सा'द प्याला बन गया ! नीशीत जोशी (तीरगी - अंधेरा,मुनज्जिम- ज्योतिषी,रिंद- शराबी)

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