चडता सूरज धीरेधीरे ढल जायेगा,
चांद भी न ठहरेगा पर ढल जायेगा,
क्यो पाल रखी है रंजीसे जहन में,
दुश्मनी का पारा भी एक दिन ढल जायेगा,
क्यों बहाते हो नीर इन आंखो से बहानोसे,
यादो का समंदर भी एक दिन ढल जायेगा,
क्यों रोस है अपने परायो का 'निशित',
यह नाशवंत शरीर भी एक दिन ढल जायेगा |
नीशीत जोशी
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