न आना बस मे है न बस मे जाना,
समय होते ही परींदे को भी उड जाना,
लाख मुश्किलो से बनाते है घोसला,
वो घोसला तो क्या सभी यंहीं छोड जाना,
बटोरने मे गुजारते है सारी जीन्दगी इन्सान,
न जाता कुछ साथ, अकेले ही पडता है जाना,
सगे-सबंधी, दोस्त-दुश्मन, है यही तक के,पर,
याद आये उन्हेभी, कर ऐसा कर्म करता है जाना ।
नीशीत जोशी
મંગળવાર, 30 માર્ચ, 2010
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