ले जाना मुजे आज, इस दुनीया के पार,
मुड न जाये वापस, छोड आना उस पार,
मन तो बहोत था रहेने का, इस जहां मे,
जहा भी देखा जहांवालो को, सब बेसार,
अपने अपने मे सब पडे है, सब बेकाम,
ढोंग करते है, मगर है सब यहा बेकार,
काम पडने पर, तुजे भी नही छोडते यह,
घंटी बजा कर मंदीरकी, खोलते है बजार,
भाव-ताल तुजसे भी, जानते नही औकात,
नाम पर तेरे ही, खुलेआम करते है व्यापार,
जी मचल उठता है, देख यह सब बेहाल,
इसीलिये कहते है आके लेजा दुनीयाके पार,
पहनके पहेनावा संतो का, करते है फरेब,
सीख भी नाम मात्र की, बाकी सब कारोबार,
नही बदलेंगे ना बदल सकेगें यह सब को,
मजहबी दंगा करवाते रहेगे, कह के खुद्दार,
अब तु ही कुछ कर सकता है तो कर ले,
वरना चल दोनो साथ चलके रहेंगे उस पार ।
नीशीत जॉशी