શનિવાર, 4 જાન્યુઆરી, 2014

कुछ कदम हम अपनी मर्जी से चले है

image.php कुछ लोग अपनी तासीर से खले है, कुछ लोग यहाँ फितरत से भले है, मोल नहीं प्यार का फरेबी दुनिया में, लगता है सब उरियाँ में ही पले है, दिखती नहीं यहाँ मुहब्बत किसी को, कहते है देखो परवाने कितने जले है, तैयार है फूलो पे चलने को यहाँ सभी, पर उन कंटक राह पे कितने चले है ? अंजान है हम तो उल्जी हुई राहो से, कुछ कदम हम अपनी मर्जी से चले है. नीशीत जोशी 03.01.14

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