શનિવાર, 12 જુલાઈ, 2014
वो इंसान ही क्या जो तेरे नाम का दिवाना न हो
वो समंदर ही क्या जिसका कोई किनारा न हो,
वो इबादत ही क्या जिसका कोई बहाना न हो,
उतर जाते है समन्दरमें मोतिओ की तलाशमें,
वो डूबना ही क्या जिसका कोई फ़साना न हो,
महफिलो की रोनक तो बढ़ती है उन चरागोंसे,
वो चराग ही क्या जिस पर कोई परवाना न हो,
सरगम की सब धुन कानो को लगाती है मधुर,
वो धुन ही क्या जिसका प्यारा कोई तराना न हो,
कहते है मारता नहीं सबको बचाता है तू जहां में,
वो इंसान ही क्या जो तेरे नाम का दिवाना न हो !
नीशीत जोशी 08.07.14
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