શનિવાર, 12 જુલાઈ, 2014

वो इंसान ही क्या जो तेरे नाम का दिवाना न हो

1609893_722204914477405_52583300_n वो समंदर ही क्या जिसका कोई किनारा न हो, वो इबादत ही क्या जिसका कोई बहाना न हो, उतर जाते है समन्दरमें मोतिओ की तलाशमें, वो डूबना ही क्या जिसका कोई फ़साना न हो, महफिलो की रोनक तो बढ़ती है उन चरागोंसे, वो चराग ही क्या जिस पर कोई परवाना न हो, सरगम की सब धुन कानो को लगाती है मधुर, वो धुन ही क्या जिसका प्यारा कोई तराना न हो, कहते है मारता नहीं सबको बचाता है तू जहां में, वो इंसान ही क्या जो तेरे नाम का दिवाना न हो ! नीशीत जोशी 08.07.14

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