રવિવાર, 27 જુલાઈ, 2014

देखकर हश्र मुहिब्ब का, यहाँ लौटता कौन है ?

1681334-bigthumbnail बिन बादल, बारिश में भीगता कौन है ? हो आँखों में अश्क़, पर बोलता कौन है ? मौत ही है, आखरी मंझिल जिंदगी कि, जानते है सब, मगर यह सोचता कौन है ? बिन तक़वा के, तक़सीर किये जाते है लोग, अपनी रूह के भीतर, झाँकता कौन है ? रहा नहीं भरोषा, अपनों पर भी किसीको, राज़-ओ-नियाज़ में, राज़ खोलता कौन है ? तोड़ कर दिल, चले जाते है महफ़िल से, देखकर हश्र मुहिब्ब का, यहाँ लौटता कौन है ? नीशीत जोशी (तक़वा =fear of god, तक़सीर =sin) 22.07.14

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો