રવિવાર, 20 જુલાઈ, 2014
बारिश की भीगी रातो में
बारिश की भीगी रातो में जब अश्क आँखों से बहते हैं,
एक तेरा तसव्वुर होता है और हम रातो को जगते हैं !
होती नहीं नींद आँखों में, बिस्तर भी काटने दौड़ता है,
चक्कर काटें कमरों में, या करवटे बदला करते हैं !
याद आती है वस्ल की बाते, रूह भी कांपने लगती है,
सहलाते हुए दिए घावों को, हम हर उस दर्द को सहते हैं !
छा जाती है फ़सुर्दगी दिल में, हर उम्मीद छूट जाती है,
आती हुयी मौसम-ए-गुल को, पतझड़ मान के चलते हैं !
नशेब-ए-फराझ तेरे इश्क़ में यहाँ बहुत हमने देखे है,
बर्फीली ठण्ड रातो को भी हम आफ़ताबी गर्मी कहते हैं !
नीशीत जोशी
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