રવિવાર, 20 જુલાઈ, 2014

बारिश की भीगी रातो में

10456817_553774058066723_129945020937037674_n बारिश की भीगी रातो में जब अश्क आँखों से बहते हैं, एक तेरा तसव्वुर होता है और हम रातो को जगते हैं ! होती नहीं नींद आँखों में, बिस्तर भी काटने दौड़ता है, चक्कर काटें कमरों में, या करवटे बदला करते हैं ! याद आती है वस्ल की बाते, रूह भी कांपने लगती है, सहलाते हुए दिए घावों को, हम हर उस दर्द को सहते हैं ! छा जाती है फ़सुर्दगी दिल में, हर उम्मीद छूट जाती है, आती हुयी मौसम-ए-गुल को, पतझड़ मान के चलते हैं ! नशेब-ए-फराझ तेरे इश्क़ में यहाँ बहुत हमने देखे है, बर्फीली ठण्ड रातो को भी हम आफ़ताबी गर्मी कहते हैं ! नीशीत जोशी

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