રવિવાર, 19 જુલાઈ, 2015
जिंदगी यूंही तमाम होती है
मत्ला का शेर, मशहूर गीतकार और शायर श्री प्रेम धवन जी का लिखा हुआ है !
"सुबह होती है शाम होती है,
जिंदगी यूंही तमाम होती है,"
रहते है महफिल में खोये से,
मय बेवजह बदनाम होती है,
हुजुम यादों का गर आ जाए,
फिर दिवानगी आम होती है,
समझते है पागल दुनियावाले,
जब गुमशुुदगी दवाम होती है,
लोग ढूंढते है उन्हे काफिले में,
ये मुहब्बत जब ग़ाम होती है !
नीशीत जोशी 13.07.15
(दवाम=lasting,ग़ाम=stop)
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