
શુક્રવાર, 1 સપ્ટેમ્બર, 2017
है ये दर्दे जफ़ा कई दिन से

खुद मुहब्बत को जताने आ गये !

दर्द जिगर में सोया होगा
ऐसा हर एक शख्श यहाँ ग़मज़दा मिला

होते अगर तुम यार तो
वाह वाही

क्यों वो अपनी नजर फिर बचाते रहे ?

होंठ ही मेरे लिये तो सा'द प्याला बन गया

सोचना मत और रोना मत अब

बज़्म में तीरगी का है आलम

रवायत तो कुछ निभायेगी

प्यार दिलबर से यहाँ मिलता नहीं

काश कोई ख़्वाब लिखते,

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