
शानो सौकतसे नीकले थे तेरी राह पर,
कुछ मिलना तो दुर , जो था सब गवा बैठे.......
अब वो भी न रहा जो कभी रहा था अपना,
परायो के बिच तुजे नीहार अपना गीना बैठे.......
दिन, महीनो, बरसो, बीत गये अब सब,
मिलन की आसमे खुदका जनाजा सजा बैठे......
उठायेंगे मुजे तब तुम जरुर आओगे सोचा,
पहोच कर अपनी कब्र पर खुद ही को दफना बैठे........
मिल जाना अगले जनममे हो गर शायद,
इसीलिये तेरे नाम की तक्ती कबर पर लगा बैठे........
नीशीत जोशी
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો