શનિવાર, 6 ઑગસ્ટ, 2011
कुछ हवा चली है
(सरला सुतारियाजीके सहयोग से बनी)
आज कुछ बात हुइ या तो आज कुछ हवा चली है ,
पीने से नशा हुआ या तो खुशनुमा कुछ हवा चली है
वो गर आ जाये तो आसमाँ को जमीं पे बीछा दे
नाच ऊठेंगे रात जवाँ होगी पुरवैया कुछ हवा चली है
साँसे बंध करके बादलो ने छुपाया तारों को आगोश मे
भुला बादल भी बरसने को बरसाती कुछ हवा चली है
गुनगुनाके बादल संभला वो चांद की रूमानी देखकर
चांद ने भी कहा चांदनी से मिलनकी कुछ हवा चली है
धरा पे चीराग मचल उठे हवाने भी रूख अपना मोडा
देखा जब चाँद को छत पर आने की कुछ हवा चली है
चांदनी मुश्कुराती बोल उठी चांद से '' आज पूर्णिमा है "
गुफ्तगू रोको आज आगोश मे लेनेकी कुछ हवा चली है ॥
नीशीत जोशी
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