ગુરુવાર, 29 ડિસેમ્બર, 2011

इस बहारमें तुम


बहार आ गयी लगता है अब आओगे तुम,
मन से उतर के दिल में बस जाओगे तुम,

तस्सवुर में ही सही ख्वाब सजाते रहते हो,
देख बहार, सपनेमें भी न रुठ पाओगे तुम,

रुठना मनवाना फिर रुठना अदाकारी तेरी,
इस बहारमें कौनसा तरीका अपनाओगे तुम,

मना लेना कैसे भी यह हुन्नर सिखा तुजसे,
बहार में हर राझ दिल के खुलवाओगे तुम,

बहारके आने जानेसे कुछ तो सिख गये है,
प्रेम या विरहके हर समयमें मुश्कराओगे तुम ।

नीशीत जोशी 28.11.11

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