સોમવાર, 17 માર્ચ, 2014
वोह सितम करते रहे
वोह सितम करते रहे,हम उसे सहते रहे,
मुहिब्ब फिर भी, मेरी साँसों में बसते रहे,
बाँध के रखा था आँखों ने दरिया अंदर,
लहर बनके वो अश्क़, बेहिसाब बहते रहे,
कांटे चूbh रहे थे हमें फूलो कि राह पर,
हमतन लहू से, पुरदर्द वो क़दम बढ़ते रहे, ,
दिल पे आहिस्ता खंजर का वार किया,
दामन छुड़ा के वोह मुस्कुराते चलते रहे,
जिसकी फितरत में नहीं था, वफ़ा का सबब,
हम उसे ही, हमसफ़र, हमराज़ कहते रहे !!!!
नीशीत जोशी
(मुहिब्ब= lover, हमतन= fully, पुरदर्द= painful) 04.03.14
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