શનિવાર, 29 માર્ચ, 2014

लगता है तन्हाई में आहें, भरे जा रहे हैं

artistic-66582 लगता है तन्हाई में आहें, भरे जा रहे हैं, याद कर के रात हिज्र की, सहे जा रहे हैं, दिल की तबाही का, हुआ हादसा शहर में, अब गाँव की मिटटी से भी, डरे जा रहे हैं, चाँद कि चाँदनी भी, लगती है धुप जैसी, बारिस को, चश्म-ए-आब कहे जा रहे हैं, हुआ है उल्फत का असर, रूह पर इतना, रखने को जज्बात ज़ब्त में, मरे जा रहे है, तबीब भी हैरान हैं, उनके इस आज़ार से, ज़ख्म खुरेच खुरेच, ताज़ा करे जा रहे हैं !!!! नीशीत जोशी 27.03.14

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