શનિવાર, 29 માર્ચ, 2014
हर कोई दौड़ रहा है
हर कोई दौड़ रहा है कुछ ऐसे सफ़र में,
पर पूरा नही कर पाते खुद की नजर में,
बच्चो में है अधिक नंबर पाने की होड़,
नहीं पा सकते है प्रश्न के अगर-मगर में,
तहज़ीब भूले,न रही किसीकी कोई कद्र,
नौजवान भूल गए है पाश्चात्य के असर में,
जला देते है घर की बहुओ को बेख़ौफ़,
माँ-बाप को भेजते है वृद्धाश्रम के बसर में,
दौड़ते है जो, खुद भी नासमज है दौड़ के,
नामुमकिन पाने की होड़ है हर नगर में,
संतुष्ट रहो उसमे, किया है जो हासिल तुमने,
खुश रहो जीवन के हर कठिन सफ़र में !!!!
नीशीत जोशी 22.03.14
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