રવિવાર, 2 માર્ચ, 2014
हर कोई महेफिल में चराग, जला नहीं सकता
हर कोई महेफिल में चराग, जला नहीं सकता,
जो खुद हो तन्हा, वोह अँधेरा हटा नहीं सकता,
हर किसीके नसीब नहीं होता, तरबे-दिल यूँ तो,
तरबजा भी उसकी तरक़ीब, बता नहीं सकता,
नादाँ रहे वही, मुहब्बत को बखूबी पा लेता है,
ताजिर कभी, खुद का इश्क़ जता नहीं सकता,
बुनियाद अच्छी हो तो, इमारत बुलंद रहती है,
हवा का झोका, उसे कमजोर बना नहीं सकता,
खुश्बू से महकता है बाग़, खुदा का करिस्मा है,
बागबान कभी भी, फूलो को महका नहीं सकता !!!!
नीशीत जोशी 25.02.14
(तरबे-दिल= ह्रदय का उल्हास, तरबजा= ख़ुशी उत्पन करनेवाला, ताजिर= ब्योपारी)
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