
चैन से मुझ को कभी, अपना रहने ना दिया,
मेरे थे वोह मगर, खुद अपना कहने ना दिया,
आयी थी वो बहारे, ले कर दिलकश नज़राना,
रोक कर उन हवाओ को, उसे बहने ना दिया,
देने को रोशनी, रोशन हो रहा था एक चराग,
खोल कर के खिड़कियाँ, उसे जलने ना दिया,
रोती हुयी रातो को, दे दी थी मैंने थोड़ी हसीं,
मालूफ़ के ख्वाबो को, मगर उसने सजने ना दिया,
सोचा था, कतरो में जीने से अच्छा है, मर जाए,
पी गया था मैं ज़हर, मगर उसने मरने ना दिया !!!!
नीशीत जोशी (मालूफ़ = beloved ) 16.08.14
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો