શનિવાર, 2 ઑગસ્ટ, 2014
हवा से ही ये जज्बा पाया है
अभी अभी, हवा का एक झोका, आया है,
बनकर वो क़ासिद, तेरी ही खबर लाया है !!
न रोकना उसे, दिवार-ए-दरमियाँ बनकर,
भरम तोड़ो, वो हवा नहीं, उसीका साया है !!
आयी होगी छू के, ये पुरवैया उनको शायद,
इन वादीओ में, खुश्बू का माहौल छाया है !!
न करना अब, दिल तोड़नेवाली कोई बाते,
उन फूलो से ही, हमने हर झख्म खाया है !!
कर देगी वो आकर, मेरी जिंदगी खुशहाल,
रूबरू ना सही, हवा से ही ये जज्बा पाया है !!
नीशीत जोशी 27.07.14
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